कुणिन्द शासन:
कुणिन्द उत्तराखंड में शासन करने वाली प्रथम राजनैतिक शक्ति थी, ये मौर्यो के अधीन थे। अमोघभूति सबसे शक्तिशाली कुणिन्द शासक था, इसने कटारमल सूर्य मन्दिर (अल्मोड़ा ) का निर्माण करवाया व रजत एवं कांस्य की देवी तथा मृग वाली मुद्राऐं चलाई।
कालसी में सम्राट अशोक का एक शिलालेख है, इसके अनुसार यहाँ पुलिंदों का निवास था व इस क्षेत्र का नाम अपरान्त था।
कालसी में सम्राट अशोक का एक शिलालेख है, इसके अनुसार यहाँ पुलिंदों का निवास था व इस क्षेत्र का नाम अपरान्त था।
शक शासन:
इन्होने कुणिन्दों के मैदानी भागों में शासन किया। जिनमें वीरभद्र (वर्तमान नाम ऋषिकेश), मयूरध्वज (वर्तमान नाम कोटद्वार), गोविषाण (वर्तमान नाम काशीपुर) मुख्य हैं।
कुषाण शासन:
कुषाणों ने भी कुछ स्थानों में शासन किया। इसी समय उत्तराखण्ड में यौधेय राजवंश का शासन भी था। यौधेय शासक शीलवर्मन ने बाड़वाल यज्ञ वेदिका का निर्माण करवाया।
कर्तृपुर राज्य:
इस राज्य में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व उत्तरी रोहिलखण्ड में सम्मिलित थे, इसकी स्थापना कुणिन्दों की। समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भलेख में कर्तृपुर राज्य को गुप्त साम्रज्य की उत्तरी सीमा में स्थित एक अधीनस्थ राज्य कहा गया है। नागों ने कुणिन्दों को हरा कर यहाँ अपना अधिपत्य स्थापित। कन्नौज के मौखरियों ने नागों को हराकर अपना अधिपत्य स्थापित किया। हर्षवर्धन के काल में 634 ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग उत्तराखंड आया, इसने गंगा को "महाभद्रा", हरिद्वार को "मयूला" व उत्तराखंड को "पोलहिमोपुलो"कहा। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद कर्तृपुर राज्य छोटे-छोटे राज्यों में टूट गया।
कार्तिकेयपुर राजवंश:
ये कुमाऊं के शासक थे, इनकी राजधानी लगभग 300 वर्षों तक जोशीमठ रही व उसके बाद बैजनाथ स्थानांतरित की गयी। इनकी राजभाषा संस्कृत थी।
बसन्तन देव- कार्तिकेयपुर राजवंश का संस्थापक। इसने परमभद्याराक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की।
खर्परदेव-
निम्बरदेव- निम्बरदेव शैव था। इसने जागेश्वर में विमान का निर्माण करवाया।
इष्टगण- उपाधि "परमभट्टारक महाराजाधिराज"
इसने उत्तराखण्ड को एकसूत्र में बाँधा व जागेश्वर में नवदुर्गा, महिषमर्दिनी, लकुलीश व नटराज मन्दिर का निर्माण करवाया।
ललितशूर- ललितशूर से संभंधित दो ताम्रपत्र मिले हैं।
कत्यूरी वंश:
ये कार्तिकेयपुर राजवंश की ही एक शाखा थे।
कत्यूरियों की अन्य शाखाएं
- सलोणदित्य
- असांतिदेव
- डोटी के मल्ल
- अस्कोट के रजवार
1191 में अशोक चल्ल ने कत्यूरियों से कुछ भाग जीता।
1223 में क्रचल्ला देव ने कत्यूरियों से कुछ भाग जीता।
1398-1399 में तैमूर ने हरिद्वार पर आक्रमण किया, जहाँ इसका सामना ब्रह्मदेव से हुआ। इसमें ब्रह्मदेव मारा गया।
आदि गुरु शंकराचार्य कार्तिकेयपुर शासन में उत्तराखंड आये व 820 ईस्वी में इनकी मृत्यु हो गयी।
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