मानव सभ्यता के इतिहास में "प्रागैतिहासिक काल" लाखों वर्ष तक व्याप्त रहा है। इस काल में आदि मानव मुख्य रूप से गुफाओं में निवास करते थे और पाषाण उपकरण का उपयोग करते थे। उत्तराखण्ड में प्रागैतिहासिक काल से सम्बंधित कई स्थलों की खोज हुई है, जिनमे कुछ महत्वपूर्ण स्थल निम्नलिखित हैं।-
Important Sites:
लखु उड़्यार : लखु उड़्यार अल्मोड़ा जिले में सुयाल नदी के किनारे बसे बाड़ेझीना गांव में स्थित है। यह उत्तराखण्ड में प्रागैतिहासिक काल की पहली खोज है। इस गुफा के चित्र का मुख्य विषय समूहबद्ध नर्तन है, कुछ पशुओं का चित्रण भी है। इसके अतिरिक्त लहरदार रेखाओं एवं बिंदुओं से निर्मित ज्योमितीय चित्रण भी हुआ है। (गुफा को उत्तराखंड की स्थानीय भाषा में उड़्यार कहते है।)
ग्वारख्या उड़्यार: इसकी खोज हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यलाय के दल ने की तथा यह चमोली जिले में अलकनंदा घाटी के डूंगरी गॉव में स्थित है। यहाँ मानवों व पशुओं (भेड़, बारहासिंघा आदि) के रंगीन चित्रों का चित्रण है।
किमनी: यह चमोली जिले में पिण्डर घाटी में स्थित है। यहाँ सफेद रंग से रंगे उपकरण व पशुओं के चित्र चित्रित हैं।
मलारी: यह चमोली जिले में स्थित है व यहाँ नर कंकाल, जानवरों के कंकाल, मृदभांड, 5.2 KG सोने के आभूषण और कुछ शवाधान भी मिले हैं।
हुड़ली: यह उत्तरकाशी में स्थित है व यहाँ शैलचित्रो में नीले रंग का उपयोग किया गया है।
ल्वेथाप: यह अल्मोड़ा जिले में स्थित है व यहाँ नृत्य व शिकार करते मानवों के चित्र चित्रित हैं।
पेटशाल: यह अल्मोड़ा जिले में स्थित है व यहाँ नृत्य करती मानव आकृतियां मिली हैं।
फलसीमा: यह अल्मोड़ा जिले में स्थित है व यहाँ मानव की योगमुद्राओं एवं नृत्यमुद्राओं का चित्रण हुआ हैं।
बाणकोट: यह पिथौरागढ़ स्थित है व यहाँ तांबे के 8 उपकरण मिले हैं, जो अब अल्मोड़ा राजकीय संग्रालय में हैं।
रामगंगा घाटी: यहाँ शवागार एवं कपमार्क्स मिले हैं।
(विशाल शिलाखण्डों पर बने ओखल के आकार के गड्ढ़ों को पुरातत्व विज्ञान में कपमार्क्स कहते हैं।)
(गुफा को उत्तराखंड की स्थानीय भाषा में उड़्यार कहते है।)
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