17 December 2017

Protohistoric Period of Uttrakhand (उत्तराखंड का आद्य -इतिहास)

आद्य-इतिहास में साहित्यिक स्रोतों द्वारा मिले जानकारियां आती हैं। संसार की पहली पुस्तक ऋग्वेद में उत्तराखंड का उल्लेख मिलता है व इसमें उत्तराखंड को देवभूमि और मनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार उत्तराखंड कुरुओं का स्थान था। पालि भाषी बौद्ध ग्रथों में उत्तराखण्ड को हिमवन्त कहा गया है। पुराणों में उत्तराखंड को ब्रह्मपुर,खसदेश व उत्तर-खंड कहा गया है। स्कन्द पुराण में पांच हिमखंडों का उल्लेख है-
1 नेपाल 
2 कश्मीर
3 जालन्धर
4 केदारखंड (गढ़वाल)- हरिद्वार से हिमालय तक विस्तार 
5 मानसखंड  (कुमाऊँ)- कालगिरी पर्वत से नंदादेवी पर्वत तक विस्तार 
रामयण के अनुसार लक्ष्मण ने टिहरी जिले के तपोवन में तपस्या की, सीता जी ने पौड़ी गढ़वाल के सितोन्स्यूं पट्टी में धरती माँ की शरण ली और श्री राम ने देवप्रयाग में अंतिम छंणों में तपस्या की, यहाँ श्री राम का रघुराम मन्दिर है।
महाभारत वनपर्व के अनुसार पांडवो ने लोमश ऋषि के साथ हरिद्वार से भृंगतुंग (वर्तमान केदारनाथ) की यात्रा की, उस समय यहाँ पुलिंद एवं किरात जाति का अधिपत्य था। पुलिंद राजा विराट की राजधानी विराटगढ़ी (जौनसार में) थी। राजा विराट की पुत्री उत्तरा थी, जो कि अभिमन्यु की विहाता थी। उत्तरा और अभिमन्यु का पुत्र परिक्षित था।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार चम्पावत में स्थित कांतेश्वर पर्वत पर भगवन विष्णु ने कूर्मावतार किया था, इसे काना पर्वत व कांडा पर्वत भी कहते हैं।

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