सुदर्शन शाह ने 1815 को टिहरी रियासत की स्थापना की। सुदर्शन शाह "बोलदा बद्रीनाथ" कहा जाता है, इनके बाद 1859 को भवानी शाह गद्दी बैठा। 1871 में प्रताप शाह गद्दी बैठा, इसने 1877 में प्रताप नगर की स्थापना की। प्रताप शाह के बाद कीर्ति शाह गद्दी पर बैठा, इसने कीर्तिनगर स्थापना की व 1897 में टिहरी घंटाघर की स्थापना की। 1897 में ही टिहरी शहर को नगर पालिका का दर्जा मिला। 1913 में नरेंद्र शाह गद्दी पर बैठा। इस समय किसानो की भूमियों को वन भूमि में शामिल किया गया, जिसके विरोध में रंवाई गाँव की जनता ने आजाद पंचायत का गठन किया। 30 मई 1930 को तिलाड़ी के मैदान में आजाद पंचायत के बैठक में रंवाई के लोग शामिल हुए, जिन पर टिहरी रियासत के दीवान चक्रधर जुयाल ने सेना को गोली चलाने का आदेश दिया। इस घटना से 70 लोग शहीद हुए व इस घटना को तिलाड़ी कांड के नाम से जाना जाता है। प्रतिवर्ष 30 मई को तिलाड़ी कांड में शहीद हुए लोगों की स्मृति में इस क्षेत्र में शहीद मेले का आयोजन है। 1939 में टिहरी में श्री देव सुमन, दौलतराम व नागेंद्र शकलानी के प्रयासों से प्रजामंडल की स्थापना हुए। 1944 को श्री देव सुमन को कैद कर दिया गया, जहां 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद इनकी मृत्यु गई। 1946 को मानवेन्द्र शाह गद्दी पर बैठे व 1948 में कीर्तिनगर में राजशाही के विरोध में आंदोलन हुआ। अंत में 15 अगस्त 1949 को मानवेन्द्र शाह में विलीनीकरण पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए फलस्वरूप टिहरी रियासत का भारत वर्ष में विलय हो गया और टिहरी उत्तरप्रदेश का एक जनपद बन गया।
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Forest Resources (वन सम्पदा)
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