उत्तराखण्ड की जनजातियाँ
उत्तराखण्ड में निवासरत 5 जनजातियों को वर्ष 1967 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। ये जनजातियाँ निम्नलिखित हैं।
थारु :
थारु उत्तराखंड में निवास करने वाला सबसे बड़ा जनजातिय समूह है। थारु मुख्यता नैनीताल, खटीमा, किच्छा, सितारगंज, नानकमत्ता आदि क्षेत्रों में निवास करते हैं। थारु खुद को महाराणा प्रताप के वंशज मानते हैं। थारु समाज मातृसत्तात्मक होता है। इनका भोजन मुख्यता चावल और मछली है। थारु सामाजिक रूप से कई गोत्र व जातियोँ में बंटा है। बडवायक, बट्टा रावत, वृतियाँ, महतो व दहेत आदि इनकी प्रमुख जातियाँ हैं। इनके मुख्य देवता भूमिया या बड़ा देवता, पछावन और खडगाभूत हैं। राकट, कोरोदेव व कलुआ जानवरों की रक्षा करने वाले देवता हैं। होली को ये शोक पर्व के रूप में मानते हैं। होली के अवसर पर ये खिचड़ी नृत्य का आयोजन करते हैं।
जौनसारी:
जौनसारी उत्तराखण्ड में निवास करने वाला दूसरा सबसे बड़ा जनजातिय समूह है। ये खुद को पांडवों का वंशज मानते हैं। जौनसारी मुख्यता देहरादून जनपद के चकराता, लाखामंडल, कालसी, त्यूणी, देवधार आदि क्षेत्रों; टिहरी जनपद के जौनपुर क्षेत्र व उत्तरकाशी में निवास करते हैं। जौनसारी समाज पितृसत्तात्मक होता है। पूर्व काल से इस जनजाति में बहुपति प्रथा रही है, जो की अब समाप्त हो रही है। जौनसारी महासू, वाशिक, बोठा, पवासी और चालदा देवता को अपना संरक्षक मानते हैं। रासो, हारुल, परात नृत्य, तांदी इनके मुख्य नृत्य हैं हारुल नृत्य में रामतुला नामक वाद्ययंत्र बजाया जाता है। इनके त्योहारों में बिस्सु, नुणाई, दीपावली, व जागड़ा मुख्य है। जागड़ा महासू देवता का त्यौहार है। इस दिन हनोल में महासू देवता को स्नान कराया जाता है।
भोटिया:
भोटिया खुद को खस राजपूत मानते है। ये अर्धघुमन्तू होते है। मारछा, तोलछा, जोहरी, जाड, शोंका, दरमिया आदि इनकी उपजातियां हैं। चमोली में मारछा, तोलछा; उत्तरकाशी में जाड और पिथौरागढ़ में जोहारी व शोंका भोटिया रहते हैं। भोटिया हिंदी व बौद्ध धर्म में विश्वास रखते हैं। भोटिया भुम्याल, ग्वाला बैग, रैग, चिम, नंदा देवी, कैलाश पर्वत, दुर्गा, द्रोणागिरी पर्वत, हाथी पर्वत, घंटाकर्ण / घड़ियाल, फैला, धुरमा आदि देवी देवताओं की अराधना करते है। इनकी भाषा रोम्बा व मुख्य त्यौहार लौहसर व सूरगेन है। लौहसर बसंत पंचमी के दिन मनाया जाता है। इनमे प्रत्येक 12 वर्षों में अगस्त व सितम्बर के मध्य कंडाली नामक उत्सव मनाया जाता है। कंडाली उत्सव जोरावर सिंह के सेना के हार में पिथौरागढ़ में मनाया जाता है। जोरावर सिंह ने 1841 में लद्दाख से यहाँ आक्रमण किया।
बुक्सा:
बुक्सा खुद को पंवार वंश के राजपूत मानते है। ये मुख्यतय उधमसिंह नगर के बाजपुर, काशीपुर व गदरपुर; नैनीताल के रामनगर; पौड़ी गढ़वाल के दुग्गड़ा और देहरादून के डोईवाला, सहसपुर में रहते हैं। बुक्सा पांच उपजातियों में विभक्त है, जो कि युद्धवंशी, राजवंशी, पवार, परतजा व तुनवार हैं। बुक्सा देवी के उपासक होते हैं। ये मुख्य रूप से दुर्गा,चामुंडा, हुल्का, ज्वाल्पा देवी और सकारिया देवता जी पूजा करते हैं। इनके मुख्य त्यौहार चैती, नोबी होली दीपावली आदि हैं।
राजी:
राजी खुद को रजवार वंश के मानते हैं। ये मुख्य रूप से पिथौरागढ़ नैनीताल व चम्पावत में निवास करते हैं। इन्हे वनराजी, वनरावत, जंगल का राजा आदि नामों से भी जाना जाता है। ये प्रकृति, बागनाथ, गणनाथ, मलेथानाथ, सैंम, मल्लिकार्जुन आदि देवी देवताओं की पूजा करते हैं। इनका मुख्य नृत्य रिखनृत्य है।
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