राष्ट्रीय उद्यान
उत्तराखण्ड में कुल 6 राष्ट्रीय उद्यान हैं।कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान:
कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान एशिया का पहला राष्ट्रीय उद्यान है। इसकी स्थापना 11 मई 1936 हेली राष्ट्रीय उद्यान के रूप में हुई। 1954 में इसका नाम रामगंगा राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। 1957 में इसका नाम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। इसका कुल क्षेत्रफल 520 वर्ग किलोमीटर है। यह नैनीताल व पौड़ी गढ़वाल जिले में फैला है। इसका प्रवेश द्वार ढिकला है। और मुख्यालय नैनीताल के मध्य पाटली दून में है। 1973 को कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का पहला बाघ संरक्षित क्षेत्र बना। यहाँ लगभग 600 पक्षी प्रजातियाँ, 25 सरीसर्प प्रजातियाँ तथा लगभग 75 स्तनधारी जीव पाए जाते हैं।
गोविन्द राष्ट्रीय उद्यान:
गोविन्द राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1980 में हुई। यह उत्तरकाशी जिले में फैला हुआ है। इसके कार्य का संचालन राजाजी राष्ट्रीय उद्यान से होता है। इसका कुल क्षेत्रफल 470 वर्ग किलोमीटर है।
नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान:
नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1982 में हुई। यह चमोली जिले में फैला हुआ है इसका मुख्यालय जोशीमठ में है। और इसका कुल क्षेत्रफल 624 वर्ग किलोमीटर है। 1998 में इसे यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक धरोहर घोषित किया गया।
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान / पुष्पावती राष्ट्रीय उद्यान:
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1982 को हुई। यह चमोली जिले में फैला है। इसका मुख्यालय जोशीमठ में है। और इसका क्षेत्रफल 87.5 वर्ग किलोमीटर है। यह उत्तराखण्ड का सबसे छोटा उद्यान है। यह नर तथा गन्धमादन पर्वतों के बीच स्थित है। यहाँ पुष्पावती नदी बहती है। पुष्पावती नदी कामेट पर्वत से निकलती है। इस क्षेत्र को पुराणों में नन्दकानन कहा गया है। 2005 में इसको यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक धरोहर घोषित किया गया। इस क्षेत्र को विश्व ख्याति प्रदान करने का श्रेय फ्रैंक स्मिथ को जाता है। फ्रैंक स्मिथ ने वैली ऑफ़ फ्लावर नामक पुस्तक में यहाँ का वर्णन किया।
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान:
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1983 में मोतीचूर पीला व राजाजी अभ्यारण को मिलाकर हुई। यह देहरादून, पौड़ी गढ़वाल और हरिद्वार जिलों में फैला हुआ है। इसका मुख्यालय देहरादून में स्थित है। व इसका क्षेत्रफल 820 वर्ग किलोमीटर है।
गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान:
गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1983 में हुई। यह उत्तरकाशी जिले में फैला है। इसका क्षेत्रफल 2390 वर्ग किलोमीटर है। ये उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है।वन्य जीव विहार
उत्तराखण्ड में पहले वन्य जीव संरक्षण केंद्र के रूप में मोतीचूर वन्य जीव विहार की स्थापना 1935 को की गयी, परन्तु 1983 राजाजी राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना कर इसे उसमे मिला दिया गया।
गोविन्द वन्य जीव विहार: इसकी स्थापना 1955 में उत्तरकाशी में हुई इसका कुल क्षेत्रफल 958 वर्ग किलोमीटर है
केदारनाथ वन्य जीव विहार: इसकी स्थापना 1972 में हुई। यह चमोली व रुद्रप्रयाग के 967 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
अस्कोट कस्तूरी मृग विहार: इसकी स्थापना 1986 में पिथौरागढ़ जनपद में हुई। इसका कुल क्षेत्रफल 600 वर्ग किलोमीटर है।
सोना नदी वन्य जीव विहार: इसकी स्थापना 1987 में पौड़ी गढ़वाल जनपद में हुई। इसका कुल क्षेत्रफल 301 वर्ग किलोमीटर है।
बिनसर वन्य जीव विहार: इसकी स्थापना 1988 में अल्मोड़ा जनपद में हुई। इसका कुल क्षेत्रफल 47 वर्ग किलोमीटर है।
बिनोग माउंटेन क्वेल वन्य जीव विहार: इसकी स्थापना 1993 में देहरादून जनपद के मसूरी में हुई। इसका कुल क्षेत्रफल 11 वर्ग किलोमीटर है।
नन्धौर वन्य जीव विहार: इसकी स्थापना 2012 में नैनीताल में हुई। इसका कुल क्षेत्रफल 269 वर्ग किलोमीटर है।
संरक्षित आरक्षित क्षेत्र
आसन संरक्षण आरक्षित क्षेत्र: इसकी स्थापना देहरादून जनपद में 2005 में 4. 4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हुई। यह भारत का पहला संरक्षणआरक्षित क्षेत्र है।
झिलमिल आरक्षित क्षेत्र: इसकी स्थापना हरिद्वार जनपद में 37.83 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हुई।
उच्च स्थलीय राष्ट्रीय उद्यान
पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान: इसकी स्थापना 1995 में नैनीताल जनपद में हुई।इसका कुल क्षेत्रफल 4.69 वर्ग किलोमीटर है।
जैवमण्डलीय सुरक्षित क्षेत्र
नन्दादेवी जैवमण्डलीय सुरक्षित क्षेत्र: इसकी स्थापना 1988 में हुई यह पिथौरागढ़, बागेश्वर व चमोली जनपद में 5860 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
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