गोरखा शासन
उत्तराखण्ड में गोरखा शासन को गोरख्याणी कहा जाता है। गोरखाओं ने 1790 में कुमाऊँ पर व 1804 में गढ़वाल में अपना अधिकार किया। गोरखा शासन के समय हरिद्वार दासमण्डी थी। इस काल में सुदर्शन शाह अपने राज्य को पाने की कोशिश करता रहा व अंग्रेजों से मदद ली। अंग्रेजों व गोरखाओं के मध्य जगह-जगह युद्ध हुए। खलंगा (नालापानी) में गोरखाओं का नेतृत्व बलभद्र शाह ने किया जो की अमर सिंह थापा का भतीजा था। बलभद्र शाह अंत में शहीद हो गया व अंग्रेजों ने इसके सम्मान में खलंगा में एक स्मारक बनाया। दूसरी ओर अमर सिंह थापा मालवदुर्ग में शहीद हो गया।
अंग्रेजी शासन
4 मार्च 1816 में अंग्रेजों ने नेपाल के साथ सुगौली की संधि की जिसमे नेपाल के ओर से गुरु गजराज मिश्र व अंग्रेजों की ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ ने हस्ताक्षर किये। अंग्रेजों को गोरखाओं से कुमाऊं मिला व सुदर्शन शाह द्वार युद्ध व्यय सात लाख रुपए न चुका पाने की वजह से सुदर्शन शाह को गढ़वाल का कुछ भाग अंग्रेजों को देना पड़ा। 3 मई 1815 को उत्तरखंड में अंग्रेजों ने पहला कमिश्नर कर्नल एडवर्ड गार्डनर को नियुक किया। 1817 में देहरादून को साहरनपुर जनपद में जोड़ा गया। 1840 में पौड़ी गढ़वाल जिले के स्थापना कर इसका मुख्यालय पौड़ी को बनाया गया। 1891 में कुमाऊं जिले से दो जिलों के स्थापना की -1 अल्मोड़ा, 2 नैनीताल। 1902 में अवध, आगरा और उत्तराखंड को जोड़ कर संयुक्त प्रान्त का गठन किया गया।टिहरी रियासत
सुदर्शन शाह:इन्होने टिहरी रियासत की स्थापना की। 28 दिसम्बर 1815 को राजधानी टिहरी स्थापित की। ये सूरत के नाम से कविताएँ लिखते थे।- प्रमुख रचना सभासागर
मानवेन्द्र शाह: टिहरी रियासत का अंतिम शासक।
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