17 December 2017

Religious Tourism-2 (धार्मिक पर्यटन-2)

पंचबद्री, पंचकेदार और पंचप्रयाग के अतिरिक्त उत्तराखंड में और भी धार्मिक स्थल हैं, जिनके अपने अलग-अलग महत्व हैं।
उन धार्मिक स्थलों में से कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं।
कालीमठ: कालीमठ रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है। यह अकेला ऐसा शक्ति पीठ है, जहाँ देवी काली अपने बहनों देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती के साथ पूजी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर के 8 किलोमीटर ऊपर काली शिला नामक स्थान पर देवी काली प्रकट हुई और कालीमठ में रक्तबीज,शुम्भ-निशुम्भ आदि दानवों का वध कर अंतर्ध्यान हो गई। यह क्षेत्र तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध है।
पूर्णागिरि मन्दिर: पूर्णागिरि मन्दिर चम्पावत जिले के टनकपुर में काली नदी के तट पर अन्नपूर्णा पर्वत के शिखर पर स्थित है। यहाँ प्रसिद्ध पूर्णागिरि मेला लगता है, यह विषुवत संक्रांति से लगभग चालीस चलता है।
नैना देवी मन्दिर: नैना देवी मन्दिर नैनीताल जनपद में स्थित है।प्राचीन नैना देवी मन्दिर का निर्माण श्री मोतीराम शाह ने करवाया जो की  1880 में भयंकर भू-स्खलन से नष्ट हो गया था। भूस्खलन के कारण दबी मूर्ति को 1882 में निकालकर पुनः मन्दिर बनाकर स्थापित किया गया।
हरिद्वार: हरिद्वार नील और विल्व पर्वत के बीच शिवालिक पर्वत श्रंखला के तलहटी पर स्थित है। यहाँ से गंगा मैदानी भागों में उतरती है। इसका प्राचीन नाम खांडव वन था। धार्मिक पुस्तकों में हरिद्वार को गंगाद्वार, मायापुर आदि नामों से उल्लेखित किया गया है। यह हिमालय के चार धामों का प्रवेश द्वार और हिन्दुओं के सात पवित्रतम स्थलों में एक है। यहाँ हर 12 वर्षों में महाकुंभ व 6 वर्षों में अर्धकुम्भ का आयोजन होता है।
कनखल: कलखल शिव की राजधानी थी। यह हरिद्वार में गंगा के पश्चिम में स्थित है। यहाँ प्रजापति मंदिर, सती  कुंड, दक्षेश्वर महादेव मंदिर अन्य आकर्षण के केंद्र हैं।
चण्डी देवी मन्दिर: चण्डी देवी मन्दिर हरिद्वार में नील पर्वत शिखर पर स्थित है। इसकी स्थापना कश्मीर के शासक सुभाष सिंह ने की, जबकि चंडी देवी की मूर्ति यहाँ आदि गुरु शकराचार्य द्वारा आठवीं शताब्दी में की गयी थी। यहाँ रोप वे की सुविधा है।
मंशा देवी मन्दिर: मंशा देवी मन्दिर हरिद्वार में विल्व पर्वत पर स्थित है। यहाँ भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए आते हैं। 
पिरान कलियर: पिरान कलियर हरिद्वार स्थित है। यहाँ चिश्ती सूफी संत अलाउद्दीन अली अहमद सबीर कलियर की दरगाह है। इस दरगाह का निर्माण इब्राहिम लोदी ने करवाया।
वाराही देवी मन्दिर: वाराही देवी मन्दिर चम्पावत के देवीधुरा में स्थित है। यहाँ रक्षाबंधन के दिन बग्वाल मेले का आयोजन होता है। इसमें दो समूहों के बीच पाषाण युद्ध होता है।
गिरिजा देवी मन्दिर: गिरिजा देवी मंदिर नैनीताल  जनपद में रामनगर के समीप गर्जिया नामक स्थान में कोसी नदी के मध्य एक टीले में स्थित है।
जागेश्वर धाम: जागेश्वर धाम अल्मोड़ा जनपद में स्थित है यह लगभग 124 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह है, इनका निर्माण काल 9वीं से 13वीं शताब्दी है यहाँ जागेश्वर मन्दिर, चांडी मन्दिर, दिनेश्वर मन्दिर, कुबेर मन्दिर, महा मृत्युंजय मन्दिर, नवदुर्गा मन्दिर, नवग्रह मन्दिर, पिरामिड मन्दिर, सूर्य मंदिर आदि प्रमुख मन्दिर हैं। जिनमे महा मृत्युंजय मंदिर सबसे पुराना व दिनेश्वर मन्दिर सबसे बड़ा मंदिर है।

द्वाराहाट: द्वाराहाट अल्मोड़ा जनपद में स्थित है। इसे उत्तर की द्वारिका भी कहा जाता है। यहाँ गुज्जर देव मन्दिर, शीतला मन्दिर, दुनागिरि मन्दिर आदि मन्दिर मुख्य हैं। इसे मन्दिरों का गाँव भी कहा जाता है।
चितई गोलू देवता मन्दिर: यह अल्मोड़ा जनपद में स्थित  है। इसे न्याय के देवता भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड  में गोलू देवता के चार मंदिर मुख्य हैं।

  • चितई  गोलू देवता मन्दिर
  • चम्पावत गोलू देवता मन्दिर
  • घोड़ाखाल गोलू देवता मन्दिर
  • ताड़ीखेत गोलू देवता मन्दिर

कटारमल सूर्य मन्दिर: कटारमल सूर्य मन्दिर अल्मोड़ा जनपद के कटारमल नामक स्थान में स्थित है। इसका निर्माण कुणिंद शासक अमोघभूति ने किया।
नीलकण्ठ मन्दिर: नीलकण्ठ मन्दिर पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर ब्लॉक में मणिकूट, चित्रकूट तथा विष्णुकूट पर्वतों के बीच पंकजा और मधुमिता नदी के संगम पर स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने अपने कण्ठ में धारण किया था।
बागनाथ मन्दिर: बागनाथ मंदिर बागेश्वर में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ ऋषि मार्कण्डेय ने यहाँ शिव की पूजा की और भगवान शिव ने यहाँ उन्हें बाघ के रूप में दर्शन दिये।
थल केदार: थल केदार पिथौरागढ़ जनपद में स्थित शिव मंदिर है।
हाट कालिंका मन्दिर : हाटकालिंका मंदिर पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित है। इस पीठ की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की।
कमलेश्वर मन्दिर: कमलेश्वर मन्दिर पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में स्थित है। स्कंदपुराण के अनुसार त्रेता युग में श्री राम जब रावण का वध कर ब्रह्म हत्या के पाप से कलंकित हुए, तो उन्होंने यहाँ कमलों से शिव की पूजा की।
हेमकुण्ड साहिब: हेमकुण्ड साहिब चमोली जनपद में स्थित है। यहाँ सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने तपस्या की। 1930 में संत सोहन सिंह ने इसकी खोज की व 1936 में गुरूद्वारे की स्थापना की।
श्री गुरु राम राय दरबार साहिब: श्री गुरुराम राय दरबार साहिब देहरादून में स्थित है। इसकी स्थापना 1699 में उदासीन सम्प्रदाय के गुरु राम राय द्वारा की गई।

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