डोला पालकी आंदोलनज
जयानंद भारती ने सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ यह आन्दोलन शुरू किया। इस आंदोलन से पूर्व दलित वर्ग के दूल्हा दुल्हन को पालकी व अन्य सवारियों में नहीं बिठाया जाता था।
कोटा खर्रा आंदोलन
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद किसान संगठनों के नेतृत्व में तराई क्षेत्रों में सीलिंग कानून लागू करा कर भूमिहीनों को भूमि वितरण कराने हेतु यह आंदोलन किया गया।
चिपको आंदोलन
1974 में गोपेश्वर के रैणी ग्राम की 23 वर्षीय गौरा देवी ने पेड़ों के अंधाधुंध कटाई को रोकने हेतु चिपको आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में महिलाओं ने महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई। सुंदरलाल बहुगुणा व चंडी प्रसाद भट्ट ने चिपको आंदोलन को शििख रख का नारा, "क्या है इस जंगल के उपकार मिट्टी पानी और बयार। मिट्टी पानी और बयार जिंदा रहने के आधार।।" था।गौरा देवी को चिपको वुमन भी कहा जाता है।
1981 में चंडी प्रसाद भट्ट को रैमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया।
मैती आंदोलन
पर्यावरण संरक्षण के लिए ये आंदोलन महिलाओं द्वारा शुरू किया गया। हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर के अनुसार, गांव की सभी कुंवारी लड़कियां एक समूह बनाकर अपने में से बड़ी लड़की को बड़ी दीदी चुनती हैं। बड़ी दीदी सभी लड़कियों नेतृत्व करती है। यह समूह पौधों की नर्सरी तैयार करता है, जिसे मैती नर्सरी कहते हैं।पाणी राखो आंदोलन
80 के दशक में उफरैंखाल ( पौड़ी गढ़वाल) में सच्चिदानन्द भारती ने ये आंदोलन शुरु किया। इन्होने दूधातोली लोक विकास संस्था का गठन किया। 2015 में जयानंद भारती को भागीरथी प्रयत्न पुरस्कार मिला।डुंगी पतौली आन्दोलन
यह बांज के वृक्षों की निरन्तर कटाई के विरोध में चमोली जिले में शुरू हुआ।
आपके इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद मेरी जिज्ञासा और ज्ञान बढ़ा है। मैं वाकई उत्साहित हूँ कि आप ऐसे ही महत्वपूर्ण विषयों पर लेख लिखेंगे। मेरी कामना है कि आप आपके उपन्यास और कविताओं को भी साझा करें, क्योंकि आपकी रचनाएँ मेरे दिन को चमका देती हैं। धन्यवाद! चिपको आंदोलन उत्तराखंड
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